बारिश (Rain) - A beautiful Hindi Poetry on Rain | वर्षा पर एक मनमोहक कविता
बारिश (Rain)
छम-छम-छम-छम बारिश बरस रही है मोरे आंगन में।
मोरा मनवा तरस रहा है भीगने को कन-कन में।
मोरी माँ कहती मोहे, मत भीग लल्ला तबियत बिगड़ जावेगा।
मन कचोट कर बैठ गया हूँ खिड़की के आंचल में।
खिड़की से दिख रहे हैं सारे नज़ारे, पानी भी ना पर रहा मोहपे।
भीग रहे है पशु-पक्षि और पेड़, कोई काहे ना उनको रोके।
उनको देख हो रही ईर्ष्या मोहे, मैं भी क्यों ना भीग सकूँ?
सब सीच रहे हैं बारिश में, मैं भी क्यों ना खुद को सीच सकूँ?
तब एक आवाज सुनी मैंने बादल के गुरराने की।
जैसे कह रहा हो वो मोहे, खुद को बारिश से बचाने की।
आवाज़ बहुत डरावना था, तन-मन मोरा सिहर उठा।
उठ खिड़की से भागा मैं, बिस्तरा में कम्बल के नीचे जा सुता।
- शहज़ादा
बारिश (Rain) - A beautiful Hindi Poetry on Rain | वर्षा पर एक मनमोहक कविता
Reviewed by Shahzada
on
May 04, 2020
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